गयी रात निकल पड़ा था यूँ ही चाँद की ओर पिछली पगडंडी से होकर कन्धो पर शाल डाले हुए नन्हा सा बादल का टुकड़ा गुजरा जब छु कर इक बून्द न जाने कहाँ से आयी क्यूं कर भिगो गयी