20151114

मुझे चाँद पर ले चलो

कल थामी ऊँगली बिटिया ने
और बोली
पा
मुझे चाँद पर ले चलो

कुछ अजीब थी ख्वाहिश
पर चेहरा उसका गंभीर था

क्या करेगी गुड़िया मेरी चाँद पर?
मेरा उस से ये सवाल था

उधर अजीब तरह से घूरने वाले अंकल न होंगे
आशीष के बहाने हाथ लगाने वाले बाबा न होंगे

आप भी तो डरते हो
रोज अख़बारों में पढ़ते हो
बाहर खेलने की खातिर नही भेजते हो

स्कूल जाने से लेकर मेरे लौटने तलक
बार बार सड़क निहारते हो

सुन उसका उत्तर
आँखों में उतर आया पानी
क्या कहता उस से
अब तो चाँद पर भी पहुच गया आदमी

जितना विस्तृत है गगन
इस गिद्ध के घात उतने ही गहरे हैं

कालिय से भी जहरीला है आज इंसान
खुद को कहता मानव
मानवता है हैरान

आज फिर जिद है बिटिया की
चलो पा
मुझे चाँद पर ले चलो