20131028

वो कल फिर आयी थी

वो कल फिर आई थी
अपनी नन्ही सी बांहे उठाये
और डाल दी थी मेरे गले में
फिर गालों पर रख दिया था उसने
चंद मुस्कुराते हुए बोसो को
यूँ लगा था के जैसे
जहाँ के सारे खज़ाने सिमट आये हों उन मासूम नन्हे होंठों पर
उसकी भोली सी जिद पर मैंने बुने थे
कुछेक परियों के ख्वाब
और फिर
दोनों ही नींद की गोद में सो गये
बहुत दिन बाद
वो कल फिर आयी थी

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