20140815

देखता हूं कई मर्तबा

देखता हूं कई मर्तबा
तुम्हें उफनते हुए
तुम कुछ तो सोचते हो
किसी के बारे में
जानता हूं कि एक ज्वार है तुम्हारे भीतर
सुनामी की भीषण सम्भावना लिये
पर समझ नहीं पाया हूं आज तक
कैसे रह पाते हो इतने शान्त
और बांट पाते हो शान्ति को
बिना भेदभाव के
मैने भगवान के बारे में कुछ ऐसा ही सुना है
कि वो भी नहीं करता भेदभाव
मैं भगवान को न मानने के बावजूद
तुम्हारे लिये आस्तिक हो सकता हूं
अपनी तमाम बिखराहटों के बाद भी
फिर फिर लौट आते हो
किसके लिये
इन बेचैन लहरों की कोई तो वजह होगी
रोज चला आता हूं
कि कुछ तो कहोगे तुम
कुछ बताओगे कभी
खुशी बांटने से बढ़ती है खूब
जानते हो तुम
पर लोग तो ये भी तो कहते हैं
कि दुख बांटने कम होता है

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