"अम्मा,क्यूँ बिला वजह कोशिश कर रहीं है,आप,गुडिया..बहुत है मेरे लिए"
उसने माँ को ग्लास में पानी देते हुए कहा
माँ मुस्कुराते हुए बोली
"मै तेरे वास्ते लडकी नही देख रही,गुडिया की खातिर माँ ढुढ रही हूँ,इक अच्छी माँ"
"फिर तो मुश्किल है,कोई औरत दुसरे के बच्चे की खातिर बेहतर माँ होने का दावा नही कर सकती"
हँसते हुए उसने सोफे का कवर सही किया
क्या कहती माँ कि उनके अंदर इक गांठ बंधी है
सो चुप लगा गयी
रात खाने के टेबल पे दोनों बैठे थे
रोटी का इक निवाला उसने माँ की तरफ बढाया
माँ ने बेटे की आँखों में लरजती प्यार की खुशबु देखी और उनका मुंह खुल गया
"माँ,किसलिए?,ज़रूरत क्यूँ है,आप हैं ना,आप से बेहतर गार्जियन होगी क्या कोई मेरी बिटिया के लिए"
"ज़रूरत है,उसे सख्त ज़रूरत है इक माँ की
आज फिर फोन आया था कि गुडिया स्कूल वैन से नही आने की जिद कर रही है,वो कहती है कि दादी को बुलाएँ,मुझे अपने कॉलेज की मीटिंग कैंसिल कर उसे लेने जाना पड़ा,उसकी इक रट थी,मुझे वैन में नही जाना,किसी तरह उसका रोना बंद कराया,वन ड्राईवर जा चूका था वरना मई उस से पूछती आखिर हर दुसरे तीसरे दिन वो वन से ना आने की जिद क्यूँ करती है?"
"क्या माँ,आप भी ना,गुडिया कौन सी बड़ी है,5 साल की ही तो है,बस आ गयी होगी जिद में,या कोई बच्चा परेशान करता हो उसे वैन में,मै बात कर लूँगा ड्राईवर से"उसने मुस्कुराते हुए माँ के कंधे पे हाथ रखा
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शाम का वक्त हुआ था,उसके कदमों में तेज़ी थी,वो अपने स्कूल से जहाँ वो डबल शिफ्ट में पढ़ाती थी घर लौट रही थी
सड़क के तारकोल की तपिश पैरों को झुलसा रही थी
अचानक उसके आँखों के सामने से एक मंज़र गुज़रा
एक मकान के बाहर के चबूतरे पर एक छोटी लगभग 5 साल की बच्ची बैठी थी,उसके पास एक आदमी बैठा था जो बच्ची के खुले बाजू पे हाथ फेर रहा था,हाथ की उँगलियाँ कंधे से उँगलियों तक आती,फिर जाती,फिर आती,दुसरे हाथ ने बच्ची को घेरा था,घेरा कभी तंग होता,कभी बढ़ जाता
वो बाज़ की तरह झपटी और बच्ची को उस आदमी से अलग कर दिया
"कौन हो तुम?इस बच्ची से तुम्हारा क्या रिश्ता है?"उसका तपतापाया चेहरा देख उस आदमी के रोंगटे खड़े हो गये
"मैं....मैं...."उस आदमी का हलक सूख गया जैसे
लडकी ने बच्ची से पूछा,"बिटिया,ये कौन हैं?"
"अंकल,पापा के दोस्त"बच्ची ने जवाब दिया
"पापा किधर हैं?"
"पापा तो अपना फोन लेने अंदर गये हैं"
"चलो मेरे साथ"उसने बच्ची का बाजू थामा और अधखुले दरवाजे में दाखिल हो गयी
अंदर से अमन आता दिखा
"जी,आप कौन?"
अमन ने इक अजनबी लड़की को देख पूछा
"बाहर गली में कोई बच्चा नही,फिर भी आपने इस बच्ची को बाहर भेज दिया,संभालें इसे"लडकी का लहजा सख्त था
"वेट..वेट..मिस,आपको कोई गलतफहमी हुई है"
"गुडिया,आप तो अंकल के साथ थी ना"
अमन गुडिया से पूछने लगा
"जी पापा"
"लुटेरे को रहबर बना के आये थे आप,हर हाथ मिलाने वाला दोस्त नही होता,समझे आप?"
लडकी का सारा लहू जैसे चेहरे पे छा गया था
वो जाने के खातिर मुड़ी और
मेज पे रखी तस्वीर पे नज़र पड़ते ही बेसाख्ता उसके जबान से निकला,"मिस जाह्नवी...."
30 साल की लड़की के भीतर से 11 बरस की बच्ची निकल के खड़ी हो गयी
सूखते होंठों पे ज़बा फेरी और दरवाजे से बाहर हो गयी
अमन हैरान था परेशान भी,सन्नाटे में था,ये क्या कह गयी वो अनजान लडकी,मेरा दोस्त,गुडिया के साथ......
उसके भीतर इतनी भी हिम्मत ना थी के वो बाहर जा के अनिल को डांटता,सवाल जवाब करता,वो सकते में था.....
वाणी एक दफा फिर ठिठकी
जिन टीचर की तस्वीर वो अभी भीतर देख के आयी थी,उसके सामने कुछ शॉपर के साथ खड़ी थी
वो उन्हें कभी भूल नही सकती थी
उसके पास खुशगवार खज़ाना नही था यादों का
बस कुछ इक यादें थीं
"आप....आप मिस जाह्नवी हैं ना"उसकी जबान लडखडाई थी,और आँखें डबडबा उठी
"तुम कौन हो बेटा?पहचान नही पाई"शॉपर वाली औरत ने प्यार से पूछा
लडकी 30 के आस पास थी,पर चेहरे पे अब भी मासूमियत बरकरार थी
"मुझे अक्सर भूल जाते हैं लोग,मैं वाणी सिन्हा,अच्छा है कि आप भूल गयी मुझे,जिनके दिमाग में खलल हो कोई नही याद रखता उन्हें"
वो तेज़ क़दमों के साथ बाहर निकल गयी
जाह्नवी के भीतर की गांठ फिर चुभने लगी थी
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तेज़ कदमों से चलते हुए वो घर पंहुची
दरवाज़ा खुलते ही अन्दर,और जा कर लेट गयी
"क्या हुआ?फिर किसी से झगडा कर के आई हो?"उसकी माँ ने पूछा
"नही,मैंने कोई झगडा नही किया,बस आते हुए एक शख्स को एक बच्ची के साथ गलत करते देखा और चुप ना रह सकी"
"वाणी,उम्र गुजर गयी पर ये क्या भर रखा है तूने,तेरे भाई बहन तुझसे मिलना नही चाहते,सारे तुझे सनकी पागल समझते हैं,कोई रिश्ता नही आता तेरी खातिर,और तू ...कोई फिकर नही,बस खुदाई फौजदार बनी फिरती है"
उसकी आँखों से पानी के दो नमकीन कतरे निकले,गालों से होते तकिये में समां गये,वो खुले दरवाजे को तकती रही,पानी का सैलाब बहता रहा
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"अजीब पागल लडकी थी,आंधी के जैसे आई और बेकार की सुना के चली गयी"अमन अब तक परेशान था,माँ ने गुडिया पे नजर डाली और अमन से पूछा
"वाणी क्यों आई थी?क्या कहा उसने?"
"आप जानती हैं उसे!!!"
"मेरे सवाल का ये जवाब नही अमन,मुझे उलझन हो रही है,बोलो"
"वो कह रही थी के अनिल गुडिया के साथ मिसबिहाव कर रहा था"और सब बताता चला गया
माँ के भीतर की गांठ और ज्यादा तेज़ी से चुभने लगी थी
रात बीत रही थी उनकी आँखों से नींद गायब
हाथ में एक पन्ना था जिसकी स्याही कई जगह से फ़ैल सी गयी थी,कुछ इक लफ्ज़ मिट से गये थे पर उन्हें एक एक लाइन याद थी
ये पन्ना फिफ्थ की वाणी नाम की एक बच्ची ने लिखा था मदर डे पर
आज उन्हें वाणी और गुडिया एक नजर आ रहे थे और गुडिया की टीचर की कही बात याद आ रही थी
"जाह्नवी जी,मेरे ख्याल से गुडिया को वैन ड्राईवर पसंद नही,जिस तरह आप उसे सुबह स्कूल छोडती हैं पिक भी कर लें या कोई और....."आवाज़ में झिझक थी,"आप खुद सोचे सारा दिन स्कूल में अच्छे से रहने वाली बच्ची वैन के पास जाते ही क्यूँ रोने लगती है...आप समझ रही हैं ना"
जाह्नवी तो जैसे जम गयी थीं,उनकी पोती किस हालात से गुजरती है वो महसूस ही न कर सकी और किया किसने जो बरसो पहले उनकी स्टूडेंट थी वाणी
वो सबसे छोटी थी
सो घर के अनगिनत काम थे जो उसके जिम्मे थे,कुछ भी घटे उसे लाना होता था पास की दुकान से जहाँ वो जाना नही चाहती,ऊपर का हिस्सा किराये पे था वहाँ जो अंकल थे उनका खाना ले जाते वक्त उसके कदम थरथराते थे वो नही जाना चाहती थी सीढियों से ऊपर,बड़े भाई के दोस्त से बड़ा डरती थी,वो उसके गाल खींचते और......
उसे स्कूल का वक्त अच्छा लगता था और सबसे प्यारी थी मिस जाह्नवी और फिर पसंद था स्टोर रूम जहाँ उसकी गुड़ियाँ थी
हर रात वो प्रे करती भाई के दोस्त न आए,ऊपर वाले अंकल दूर चले जाये,और वो परचून वाला बीमार हो जाये हमेशा के लिए
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अमन के हाथ में एक पन्ना था
लिखा था
"मेरी माँ
मै क्या लिखू मेरी माँ तो है पर वो मेरी बात समझ नही पाती
मिस जाह्नवी कहती है कि गॉड 100 माँ से ज्यादा प्यार करता है पर कैसे मान लूँ जब मेरी माँ मुझे समझ नही पाती
मैं नुक्कड़ की दुकान पे नही जाना चाहती क्यूंकि वो मुझे दुकान के अन्दर ले जाते हैं
मैं ऊपर के किरायेदार अंकल को खाना देने नही जाना चाहती वो बहुत गंदे हैं मुझे हर जगह हाथ लगाते हैं
मैं भाई के दोस्त के पास भी नही जाना चाहती वो बहाने से मेरे गाल खींचते हैं मुझे जबरन गोद में बिठाते हैं
मैं माँ को कैसे समझाऊ,मैं रोती हूँ तो वो मुझे मनहूस कहती है
मैं किस तरह माँ को बताऊ
डिअर गॉड,आज हैप्पी मदर डे पर मेरी दुआ सुन
प्लीज् प्लीज प्लीज्
ओ गॉड प्लीज्"
अमन की ऑंखें भीगी हुई थी
माँ ने बताया कि ये वाणी ने लिखा था जब वो 11 बरस की थी
और इसी कारन वो ही समझ सकी,देख सकी जो हम नही देख सके
मैंने उसके माँ बाप को बुला कर समझाया था कि उसकी मासूमियत बचाएं
पर बात समझ ना आई उनके और वो लोग उसे स्कूल से निकाल ले गये
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