ना जाने क्यों बड़ी सूनी लगती है जिंदगी न जाने क्यूँ लगता है कि कुछ खो गया है तलाशता हूँ दर बदर एक परछाई का पीछा करता हूँ जिसकी न कोई शकल है न ही है वजूद उसका कहीं पर मगर तलाशता हूँ उसको न जाने उससे मेरा रिश्ता क्या है
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