20150304

अधूरी

अधूरी ख्वाहिशों के बीजों से पनपे
रात की काली दलदली गलियों में
पलकें खोलते हैं ख्वाब
जमीं नही मिलती उन्हें हकीकत की
ना ही सह पाते हैं ताप सच का
और गल जाते हैं बारिशों में अश्कों के
उन्ही गलियों में सिसकते हुए

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