अधूरी ख्वाहिशों के बीजों से पनपे रात की काली दलदली गलियों में पलकें खोलते हैं ख्वाब जमीं नही मिलती उन्हें हकीकत की ना ही सह पाते हैं ताप सच का और गल जाते हैं बारिशों में अश्कों के उन्ही गलियों में सिसकते हुए
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