इक मक़ा को घर बनाते हैं
रिश्ते
वक्त के साथ घर की दीवारों पे
कुछेक दरारें पड़ जाती हैं
पपड़ी पड़ने लगती है
दरारें बातों की
पपड़ी गलतफहमी की
रंग ओ रोगन कराते हैं
पर दरारें
क्या करें कमबख्त
दिखती ही हैं
और
वक्त के साथ अजनबी हो जाते हैं
घर मक़ा बन जाते हैं
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