20160228

बेटी तो बेटी होती है....

तेज धूप में पसीने की बूंदें उसके चेहरे पर चुचुआ आतीं,जिन्हें वह बार बार पोंछ लेता था
उसके कपड़े उसके शरीर के साथ चिपक गए थे सांय सांय करती सडक पर दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था
उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी
एकाएक सामने से उसे एक जीप आती दिखाई दी
वह पलक झपकते सड़क के बीचोबीच आ खड़ा हुआ
चींई करती हुई ब्रेक लगी
ड्राइवर उसे घुड़कता या चपत रसीद करता इससे पहले ही गाड़ी से उतरते पुलिस अफसर ने उसे रोक लिया
पुलिस अफसर ने हाथ जोड़े
नतग्रीव खड़े उस व्यक्ति के पास आकर संजीदगी से पूछा
क्या बात है बाबा?

वह मर्माहत सा रिरियाते हुए बोला
मेरी बेटी…मेरी बेटी को....

क्या हुआ है आपकी बेटी को?
पुलिस अफसर ने हौसला अफजाई की

दो गुंडे उसे इस ओर भगा ले गए हैं
उसने इशारे से उस सड़क की ओर उँगली उठा दी

पुलिस अफसर पलटा और आदेश दिया इंस्पेक्टर,तुम फौरन उनका पीछा करो
यह बुजुर्ग बहुत घबराए हुए हैं,मैं इनके पास रहूँगा

आधे घण्टे के बाद जीप लौटी
उसमें वह लड़की और दोनों गुंडे भी थे

लड़की को देखकर पुलिस अफसर भीतर तक काँप गया
फिर अधेड़ व्यक्ति की ओर उन्मुख होकर बिना कुछ जाहिर किए पूछा
क्या यही आपकी बेटी है?

इससे पहले कि अधेड़ व्यक्ति कुछ कहता, लड़की बिलखती हुई पापा…पापा कहते हुए पुलिस अफसर से लिपट गई

अधेड़ व्यक्ति सब कुछ समझ गया
वह निरपेक्ष भाव से कुछ देर पुलिस अफसर को देखता रहा
फिर वह जाने के लिए मुड़ा
पुलिस अफसर सचेत हुआ और आगे बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा
आप रुकिए,मैं अभी इंस्पेक्टर को आपकी बेटी को ढँढ़ने के लिए भेजता हूँ

अधेड़ व्यक्ति ने पल भर पुलिस अफसर की आँखों में झाँका
फिर गहरे सुख की अनुभूति के तहत धीरे से कहा
वह तो मिल गई साहिब
बेटी तो बेटी होती है,वह मेरी हो या आपकी
कहकर उसने हाथ जोड़े और लड़की के सिर पर हाथ फेरते हुए पलटकर गाँव की ओर जाने वाली पगडंडी पर हो लिया

पृथ्वीराज अरोरा लिखित कहानी

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