वो आदमी
अपनी ज़िन्दगी से निराश नहीं
जो किनारे लगे कूड़े के ढेर में
तलाशता है कुछ
फिर सड़क पे चलते लोगों को निहारता
और फिर अपने काम पर टिक लेता है
खुद को
शायद यही सोचता है
कि
ये सब मेरी खातिर नहीं
या फिर कुछ और
अचानक दौड़ के पास के कचरे से कुछ उठाता है
यूँ
जैसे पा लिया हो उसने प्रसाद ईश का
वो कचरा बीनने वाला आदमी
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