20160408

पुराने पथ पर एक बार फिर

मन किसी यात्रा पर निकल पड़ा
वही गति,वही वेग,वही आवाज़ें
बहुत ही जानी पहचानी सी यात्रा
जानी पहचानी सी राहें
जाना पहचाना सा उन राहों का सन्नाटा
वही बिखरी हुई हवाएँ
जलते हुए अतीत के मंज़र
यही तो है जीवन
न कभी एकांत हटा
और न हटा वो वीभत्स सन्नाटा
पल पल होता रहा छलनी आत्म
शब्द बाणों से

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