ये जो बूँद बूँद बरसा करती है... हर लम्हे हल्का-हल्का टूटती जाती है... बची है बस बालिश्त भर ही वो जमीँ... जिसमेँ कभी सारा जहाँ समाया होता था... मेरी खुदर्गजी है या मेरे साथ ये होना था....
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