20160505

बिटिया के साथ कुछ पल

क्या खोया क्या पाया
क्यों करना इसका हिसाब
जो था अपना,अपना है
जो न था,मेरा था ही कब
बस कुछ लम्हे थे,बीत गए
राह तकने से न लौटेंगे अब

आओ,भटकते हैं
खंगालते हैं
कुछ बीते लम्हे
कुछ देखे सपने
कुछ किरचें अरमानों की
कुछ पन्ने आसमानों के

जीवन है क्या बिटिया तू ही बता
मेरी ऊँगली और तेरा हाथ
हाँ ,टूटे हैं कई अरमान,और बिखर गया सारा जहान
पर ओ री नन्ही शहज़ादी,
राहों में मोड़ तो मिलते ही हैं,
मोड़ों पे लोग बिछड़ते भी हैं
फिर आएंगे मोड़ परी,
जीवन बगिया फिर महकेगी

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