इक थी बिटिया
एक था उसका पा
छोटी सी दुनिया थी उनकी
खुशियाँ थी चारो ओर
बीत रहे थे दिन हँसी-ख़ुशी
फिर एक दिन पा ने कहा बिटिया से
मेरी लाडो,मेरी बिटिया
जाना होगा मुझको तुमसे दूर
हूँ मैं बहुत मज़बूर
दूर देश को जाऊंगा
पैसा वहाँ कमाऊंगा
लौट के मैं अपनी शहजादी का
धूम से ब्याह रचाऊँगा
वो निकल गया अनजाने देश
विदा करने अपने पा को बिटिया संग आई
पा ने उसको गले लगाया
प्यार से चूमा,माथा सहलाया
और निकल पड़ा अपने सफ़र पर
मंजिल कहाँ न थी उसको ख़बर
उधर दो आँखें उसे दूर होते देख रही थी
दो मासूम आँखें
पा की शहजादी की नम आँखें
और धीरे धीरे पा की परछाईं खो गयी
दिखना बंद हो गयी
लौट चली वापस वो आशियाने की ओर
रोज़ वो आती उसी किनारे
जहाँ उसने अपने पा को विदा किया था
इंतज़ार करती
वक्त का पहिया चलता रहा
वो हर दिन आती
इंतजार करती
फिर बोझल पाँव घर की ओर मुड जाते
आँधी ने रोका कभी बारिश ने कदम थामे
पर उसे न रुकना था
न वो रुकी
नित आती उसी किनारे
और नज़र ढुन्ढ़ती
अपने पा को
बीतता रहा वक्त
बिटिया बढती रही
सयानी हुई
कोई आया जिंदगी में
और फिर इक नया रिश्ता जुड़ा
इक शहजादा आया
पर वो कमी बनी रही
आती रही वो किनारे पर
दिन बीते
परिवार बसा
थी बच्ची कभी
बच्चों की माँ बनी
खुशियाँ तमाम फिर से आयीं
खिली बगिया,कल्याण मुसकाई
बीती होली,गयी दिवाली
पर एक कोना था अब भी खाली
अब भी जाती नित उसी किनारे
संग होते उसके बच्चे प्यारे
वक्त को रुकना न था
सो वो चलता रहा
बिटिया बड़ी हुई
माँ बनी
और फिर दादी नानी बनी
दुनिया बदली लोग बदले
किनारे भी दूर होते गये
पर
उसका आना नही रुका
जीवन की सांझ आने लगी
जिस्म भी थकने लगा
किनारे सूख चले थे
उस दिन किनारे पे आके उसने कदम आगे बढाये
उसी तरफ जिस ओर पा को जाते उसने देखा था
कदम चलते रहे
और नज़र तलाशती रही
फिर नथुनों में इक खुशबू आई
इक पहचानी सी खुशबू
उन बाँहों की खुशबू
जिनमें बचपन बीता था
नज़र ने ढुन्ढ़ ही ली
वो पा की चादर थी
जिसने कभी उसे ठण्ड का एहसास न होने दिया था
उसने वो चादर बांहों में भरी
और सो गयी
और
उसका पा सामने था
बाहें फैलाये
पा के संग हो ली
आखिर जिसे खोजती रही तमाम उम्र
जिन्दगी की शाम ने दोनों को मिला ही दिया
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