मानी गिर पड़े हैं शब्दों के झाड़ से
बाँझ की कोख जैसी खाली है .... मेरी
सुन्न पड़ने लगी हैं नसें एहसास वाली
मुझ जैसे की लाश जिस्म में है मेरी
वो रूह जो भटकती थी तलाश में न जाने किसकी
किसी ब्लैक होल में दफ़न हो गयी है
बाकी है बस टिन टिन करती साँसें
उनको भी इक दिन थमना है हमेशा के वास्ते
मिट्टी को एक दिन मिलना ही है मिट्टी में
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