इक था मूर्तिकार
मूर्तियाँ बनाता था
इक दफा उसने एक सपना देखा
सपने में
वो इक पेड़ क नीचे बैठा था
वहीँ पेड़ क नीचे
दो पत्थर थे
उसने इक को सामने रखा
और
थैले से छेनी हथोड़ी निकाली
जैसे ही उसने पत्थर पर पहली चोट की
पत्थर चीख पड़ा
मुझे मत मारो
और रोने लगा
मूर्तिकार ने कुछ सोचा
और
उसने पहले पत्थर को छोड़
दुसरे पत्थर को सामने रखा
और उस पर छेनी हथौडी चलानी शुरू कर दी।
दुसरे पत्थर ने छेनी हथोड़ी की चोटें बर्दास्त की
नतीजा
थोड़े ही वक़्त में वो एक मूर्ति में बदल गया
देवी माँ की मूर्ति में
मूर्तिकार चला गया
अपने राह को
वक़्त बीता
एक दिन
वो मूर्तिकार उसी राह से गुजरा
उसने देखा
मूर्ति की पूजा हो रही है
लोग line लगा के उसके दर्शन कर रहे हैं
भजन हो रहे हैं
तरह तरह के फूल मालायें मूर्ति को चढ़ा रहे हैं लोग
उसने अपनी नजर दौड़ाई
थोड़ी दूर पर उसे पहला पत्थर दिखा
जो उसकी हथौड़ी की चोट पर रो पडा था
एक ओर पड़ा था
लोग उस के सिर पर नारियल फोड़ कर
देवी माँ के चरणों में चढ़ा रहे हैं
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