20190418

यात्रा

शून्य में विचरता है वो
किसी की पलकों से निकल जाता
अश्रु बूंद बन कर
किसी ने आह कर के निकाल दिया
कभी निकला बन के मोती स्वेद का
और कभी.....
सफर में है
अंतहीन यात्रा है सपने की

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