शून्य में विचरता है वो किसी की पलकों से निकल जाता अश्रु बूंद बन कर किसी ने आह कर के निकाल दिया कभी निकला बन के मोती स्वेद का और कभी..... सफर में है अंतहीन यात्रा है सपने की
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