उधार की रोशनी कितने दिन की ब्याज देने और किस्तें चुकाने में और बीतते हर लम्हे बढ़ता गया उधार सांसों के चूहे कुतरते रहे उम्र पता ही न लगा न जाने कितने उजाले भेंट चढ़ गए पर न हो सका चुकता अब भी कुछ है बाकी उसकी चन्द साँसे हैं शेष
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