प्रेम दिवस पर सोचा
कुछ लिखूं
फिर जेहन पर जोर दे सोचा
आखिर ये शब्द "प्रेम" है क्या?
माँ की ममता
प्रेम ही तो है
उसकी झिडकियां
उसकी डांट
प्रेम का ही तो रूप है
बाबु जी का गुस्सा होना
जब मैं देर से लौटता था घर
प्रेम ही तो था
छुटकी राखी के दिन जब बोलती
भैया मेरी उमर भी तुम्हें मिल जाये
और
बड़की राखी बांधते
हाथों को थाम
जीवन भर का साथ मांगती
और मै
सोचता
क्या पता
कब
शाम हो जाये
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